रविवार, 17 जून 2012

अजायबघर


बढ गया
बिजली का बिल
स्ट्रीट लाईट नहीं जलती
इन्वरटर की बैटरी
लग गयी है कार में
हेडलाईट नहीं जलती
सर को पटकने से
जलती है एल ई डी लाईट
देती है मद्धम रोशनी
पॉंडस का पावडर लगाने से भी
नहीं बढती चमक 
पैरों में आलता लगाते ही
निकल आते हैं सांप बिल से
रात गहराते ही
बड़- बड़े मेंढको से भर गया
घर का आंगन
बाऊंड्री वाल पर बैठा गिरगिट
बुलाता है मुझे सिर हिला  कर
शरम नहीं आती
क्या माँ बहन नही
बिजली ने सितम ढाया
मेरा घर देखो
अजायबघर हो गया है

शुक्रवार, 1 जून 2012

प्रतीक्षा

एक सनसनी
दौड़ती है रगों में
अखबारों की सनसनीखेज
खबरों की तरह
सड़क पर चलते हुए
लौटते हुए ऑफ़िस से
घर की ओर
जब देखती हूं तुम्हे
बढ जाती धड़कने
जल जाती है हेडलाईटे
जल जाती हैं स्ट्रीट लाईटें
जैसे सांझ हो गयी हो
बैठें है आनासागर के किनारे
हाथों में हाथ लिए
सपनों की सौगात लिए
अखबारों की खबरें
बासी हो जाती हैं घंटे भर बाद
पर पुरानी नहीं होती
तुम्हारी याद
फ़ूट पड़ता है यादों का सोता
भावनाओं का जखीरा
लग जाते हैं सवेंदनाओं को पंख
मन उड़ान पर होता
कल्पनाएं सातवें आसमान पर
गर तुम फ़िर मिल जाते
आना सागर के किनारे
प्रतीक्षा है तुम्हारी निरंतर
इस जन्म से अगले जन्म तक