अक्सर उपलब्धियां हासिल करने के बाद जब हम सफ़लता की सीढियाँ चढते हैं तो मन में गर्व का भाव आ जाता है और हम खुद को बेस्ट महसूस करने लग जाते हैं। आखिर क्यों ना हो, उपलब्धि और सफ़लता पर तो गर्व होना चाहिए। लेकिन यह गर्व धीरे-धीरे अहंकार में बदल जाए तो फ़िर समस्या खड़ी हो जाती है। यह अहंकार हमसे ऐसे ऐसे कार्य करवाता है कि जिन सीढियों से धीरे-धीर हम चलकर सफ़ल हुये है, उन्ही सीढियों से तेजी से नीचे आकर असफ़लता मिलती है, इसी अहंकार की वजह से हम दुसरों को चोट पहुंचाते है, और अपनी उपलब्धि का दिखावा करते हैं दु्सरे को छोटा महसूस करते हैं। यह अहंकार सफ़लता का सबसे बडा शत्रु है और इसने दुनिया के बड़े-बडे लोगों को नहीं छोड़ा।
रावण जैसा महाबलशाली और परम ज्ञानी भी इस अहंकार का शिकार हो गया था, उसे विश्वास था कि तीनों लोकों में उसे कोई परास्त नहीं कर सकता।कहते हैं कि एक ज्योतिषी ने रावण से कहा था कि शनि की दृष्टि की वजह से तुम्हारा पतन होगा। रावण ठहाका लगा कर हंसा और अगले ही दिन शनि को दरवार में बुलाया, दरबार में सबके बीच बैठकर शनि को अपने पैरों के बीच लिटाया और उसकी पीठ पर पैर रख कर सिंहासन पर बैठ गया। अहंकार में चुर रावण सबको दिखाना चाहता था कि वह शनि को पैरों तले रख सकता है, तभी नारद वहां पहुंचे और उन्होने उसे रावण से कहा-"हे रावण तुम क्यों शनि की पीठ पर पैर रख कर कमजोरों सा कार्य कर रहे हो, तुम्हे तो इसकी छाती पर पैर रखना चाहिए, तुम क्यों इसकी दृष्टि से घबरा रहे हो? गर्व में चूर रावण ने शनि को पलट दिया और सीने पर पैर रखा, कहते हैं कि उसी समय शनि ने अपनी कु्पित दृष्टि शनि पर डाल दी और रावण के सर्वनाश की कहानी लिख दी। जब इस अहंकार ने रावण जैसे महाज्ञानी को नहीं छोड़ा तो हम और आप तो आम लोग हैं। इसलिए मित्रों उपलब्धि पाकर बड़ा हो जाना सरल है, परन्तु उपलब्धि पाकर वैसा ही रहना बहुत मु्स्किल है। यदि यह गुण आपके अंदर आ गया तो लोग आपके साथ रहना चाहेंगे और आप लोकप्रिय हो जाएंगे।
डॉक्टर उज्ज्वल पाटनी
नवभारत से साभार
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