गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

पांच रुपए की इज्जत

अजीब है जिन्दगी
घर का काम और दफ़्तर
उफ़्फ़! उपर से बरसते अंगारे
पिघला देते हैं कोलतार भी
बस से उतरते ही
चिपक जाती है चम्पलें
कोलतार में
और शहीद हो जाती है
बरसते अंगारों के बीच
ढूंढती हूं कहीं कोई
मोची दिख जाए
सिल दे टूटी चम्पल
लगा दे दो चार टांके
जिससे दफ़्तर में
चम्पलों से अधिक
लोगों की निगाहों का
निशाना मैं न बनुं
सड़क के किनारे
खोखे की छाया में
दिख जाता है एक मोची
जो रांपी लेकर काट रहा है चमड़ा
जैसे कभी मेरे जिगर को
काटा था उसने तीखे शब्दों से
मोची चम्पलों का चिकित्सक
उसका चम्पलों का अस्पताल
सिलता है मेरी चम्पल
और मै बच जाती हूँ
लोगों की प्रश्न करती निगाहों से
सिर्फ़ पॉच रुपए  में

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

विषैली जाति


कुतिया ने जने
छ: बच्चे
एक को खा गयी
पाँच बचे
उन्हें दो महीने
दूध पिलाया
बड़ा किया
अब वे मोहल्ले में
शान से घुमते हैं
घर घर डोलते हैं
हांडी चाटते हुए
एक को सड़क पर
काली कार ने चपेट दिया
दुसरे ने नाली में फ़ंस कर
दम तोड़ दिया
अब बाकी बचे दो
और उनकी माई
दौड़ाते हैं सड़क पर
चलती गाड़ियों को
जैसे वोट न पाने से
हारा पगलाया नेता
काट खाने को दौडता है
मोहल्ले के वोटरों को
कुत्तों के काटे का इलाज
इंसान ने विकसित कर लिया
पर उससे भी विषैली जाति
काटे जा रही है रोज जनता को
जनता को तो दंश झेलना ही है
कभी कुत्तों से कभी
जहरीले इंसानों से
यही नियति है

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

सिर्फ़ तुम ही तुम

कुछ याद नहीं
जब सपने मे तुम आए
चूडियां खनकी
उफ़्फ़! चुंबन से तुम्हारे
बिजली सी कौंधी
पायल कंपकंपाने लगी
उड़ गए कपोत
मेरे हाथों के
सुध न रही
मुझे अपनी ही
जब तुम गिन रहे थे
एक एक चूडियां
हरी लाल नीली
सुनहली सपनीली
सांसो की सरगम
पहुचना चाहती थी
मंजिल पर
सहसा ठहर गया वक्त
घूमती रही धरा
शुन्याकार हुआ
हुआ वुजूद
थरथराते रहे लब
मुंद ली आंखे मैने
सपने में ही
छा गए हर तरफ़
सिर्फ़ तुम ही तुम

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

अना सागर


अना सागर
कितना विशाल है
तुम्हारे वक्ष की तरह
जब समेट लेती हूं
अपने आपको उसमें
लगता है सुरक्षित हो गई
अना सागर भी
सदियों से समेटता रहा है
तेरा मेरा अपना दर्द
सीने में
दफ़्न सदियों के राज
उगले नहीं है अब तक
उसने
सत्ताओं के संघर्ष
अंत:पुरम के षड़यंत्र
रानियों की प्रेम कहानी
राजाओं की रजाई
सेनापति का विद्रोह
गोरी के आक्रमण की त्रासदी
कुछ भी नहीं उगला उसने
कितना विशाल है तुम्हारा हृदय
सब कुछ समेट लेता है
अभिसारिका की चुड़ियों की खनक
किंकणियों की रुनझुन
बिजलियों की चमक
रात के अंधेरे में
चुपके से आते हुए
बजते तुम्हारे नुपुर
फ़ुसफ़ुसाते अधरों की नक्काशी
सब दफ़्न है
सीने में अना सागर के
तुम्हारा सीना भी मुझे
आना सागर सा लगता है
क्या तुम भी समेंट सकते हो
दर्द, उपहास, पीड़ा, अपमान
जो कुछ भी घटा मेरे जीवन में
जब्त कर सकते हो वे रातें
जो गुजारी मैने
किसी और के पहलु में
अना सागर की तरह