अजीब है जिन्दगी
घर का काम और दफ़्तर
उफ़्फ़! उपर से बरसते अंगारे
पिघला देते हैं कोलतार भी
बस से उतरते ही
चिपक जाती है चम्पलें
कोलतार में
और शहीद हो जाती है
बरसते अंगारों के बीच
ढूंढती हूं कहीं कोई
मोची दिख जाए
सिल दे टूटी चम्पल
लगा दे दो चार टांके
जिससे दफ़्तर में
चम्पलों से अधिक
लोगों की निगाहों का
निशाना मैं न बनुं
सड़क के किनारे
खोखे की छाया में
दिख जाता है एक मोची
जो रांपी लेकर काट रहा है चमड़ा
जैसे कभी मेरे जिगर को
काटा था उसने तीखे शब्दों से
मोची चम्पलों का चिकित्सक
उसका चम्पलों का अस्पताल
सिलता है मेरी चम्पल
और मै बच जाती हूँ
लोगों की प्रश्न करती निगाहों से
सिर्फ़ पॉच रुपए में
घर का काम और दफ़्तर
उफ़्फ़! उपर से बरसते अंगारे
पिघला देते हैं कोलतार भी
बस से उतरते ही
चिपक जाती है चम्पलें
कोलतार में
और शहीद हो जाती है
बरसते अंगारों के बीच
ढूंढती हूं कहीं कोई
मोची दिख जाए
सिल दे टूटी चम्पल
लगा दे दो चार टांके
जिससे दफ़्तर में
चम्पलों से अधिक
लोगों की निगाहों का
निशाना मैं न बनुं
सड़क के किनारे
खोखे की छाया में
दिख जाता है एक मोची
जो रांपी लेकर काट रहा है चमड़ा
जैसे कभी मेरे जिगर को
काटा था उसने तीखे शब्दों से
मोची चम्पलों का चिकित्सक
उसका चम्पलों का अस्पताल
सिलता है मेरी चम्पल
और मै बच जाती हूँ
लोगों की प्रश्न करती निगाहों से
सिर्फ़ पॉच रुपए में