सोमवार, 2 अप्रैल 2012

अना सागर


अना सागर
कितना विशाल है
तुम्हारे वक्ष की तरह
जब समेट लेती हूं
अपने आपको उसमें
लगता है सुरक्षित हो गई
अना सागर भी
सदियों से समेटता रहा है
तेरा मेरा अपना दर्द
सीने में
दफ़्न सदियों के राज
उगले नहीं है अब तक
उसने
सत्ताओं के संघर्ष
अंत:पुरम के षड़यंत्र
रानियों की प्रेम कहानी
राजाओं की रजाई
सेनापति का विद्रोह
गोरी के आक्रमण की त्रासदी
कुछ भी नहीं उगला उसने
कितना विशाल है तुम्हारा हृदय
सब कुछ समेट लेता है
अभिसारिका की चुड़ियों की खनक
किंकणियों की रुनझुन
बिजलियों की चमक
रात के अंधेरे में
चुपके से आते हुए
बजते तुम्हारे नुपुर
फ़ुसफ़ुसाते अधरों की नक्काशी
सब दफ़्न है
सीने में अना सागर के
तुम्हारा सीना भी मुझे
आना सागर सा लगता है
क्या तुम भी समेंट सकते हो
दर्द, उपहास, पीड़ा, अपमान
जो कुछ भी घटा मेरे जीवन में
जब्त कर सकते हो वे रातें
जो गुजारी मैने
किसी और के पहलु में
अना सागर की तरह


4 टिप्‍पणियां:

  1. behad samvedan sheel or pyar ko abhvyakt karti rachna ,bdhai. mere blog par aapka svagat hae.

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  2. तुम्हारा सीना भी मुझे
    आना सागर सा लगता है
    क्या तुम भी समेंट सकते हो
    दर्द, उपहास, पीड़ा, अपमान
    जो कुछ भी घटा मेरे जीवन में
    जब्त कर सकते हो वे रातें
    जो गुजारी मैने
    किसी और के पहलु में
    अना सागर की तरह... गहरे भाव

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  3. रात के अंधेरे में
    चुपके से आते हुए
    बजते तुम्हारे नुपुर
    फ़ुसफ़ुसाते अधरों की नक्काशी
    सब दफ़्न है
    सीने में अना सागर के
    तुम्हारा सीना भी मुझे
    आना सागर सा लगता है

    बहुत बहुत सुन्दर भाव..............
    बहुत खूब सुधा जी.

    सादर
    अनु

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  4. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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