शनिवार, 31 मार्च 2012

गौरैया मेरे आंगन में अब आती नहीं

मित्रों बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आने का टाइम मिला.......... बिजनेश और घर गिरहस्थी से समय निकलना बहुत कठिन है. सोचती हूँ की अब नियमित लेखन करूँ. हिंदी लिखने की बहुत समस्या है. अगर कोई साफ्ट वेयर हो तो अवस्य बताएं जो ऑफलाइन भी हींदी लिखता हो. प्रस्तुत है मेरी एक कविता आशा है की आपको पसंद आएगी.



गौरैया मेरे आंगन में
अब आती  नहीं
मेरे कमरे की छिपकली
अब जाती नहीं

घर मालिक से पहले
छिपकलियाँ आ जाती हैं
ड्राईंग रुम से लेकर
किचन तक में घुस जाती है

कल मैने उन्हे खूब भगाया
मौंटी के पापा को खूब थकाया
बड़ी बेशर्म है छिपकलियाँ
घर से जाती नहीं हैं
मुझे वे पल भर भी भाती  नही हैं

खिड़की खोलते ही पर्दे से
टपक जाती है
जैसे डीजल पैट्रोल की कीमत
कभी भी बढ जाती है

बड़ा डर लगता है अब
पर्दे को हाथ लगाना
लगता है सिलेंडर का रेट भी
बढाएगा मनमोहन नाना

बेटी बहुओं का तो कुछ
ख्याल करो तुम
इतनी मंहगाई में घर कैसे चलाएं
अन्ना का अनसन तो तुमने तोड़ दिया
हमारे घर का बजट भी बिगाड़ दिया

बाबा भाग गया सलवार पहन
जो बनके आया था रहनुमा
दिल्ली से निकल बन भागा
बनके छिपकली नुमा

तुमसे से अच्छी तो मेरी
देखो छिपकली है
परदे के पीछे रहती
मुगले आजम अनारकली है

मंहगाई न बढाओ
कुछ तो ख्याल करो
अब के बजट में
हमे निहाल करो

4 टिप्‍पणियां:

  1. तुमसे से अच्छी तो मेरी
    देखो छिपकली है
    परदे के पीछे रहती
    मुगले आजम अनारकली है ... waah! sach me

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  2. बाबा भाग गया सलवार पहन
    जो बनके आया था रहनुमा
    दिल्ली से निकल बन भागा
    बनके छिपकली नुमा
    STRAIGHT AND SIMPLE BUT HEART TOUCHING.
    BEAUTIFUL LINES.

    जवाब देंहटाएं