गुरुवार, 10 मई 2012

गुझिया निंगोड़ी


गुझिया
उलझन है जी की
क्या करुं/ पसंद है पी की
बहुत झमेला है
इसे बनाने में
वाट लग जाती है
लाईफ़ की
छोटी सी प्रीत
निभाने में
सूजी मैदा शक्कर
मावा खोया घी
गोल गोल मोड़ कर
बनाऊ पिया जी
कढाई में डालते ही
कड़कती है, भड़कती है
फ़ूट भी जाती/बिखर जाती है
मेरे सपनीले ख्वाबों की तरह
तब/मां-दादी याद आती
नानी भी बहुत याद आती है
गरम तेल की कड़ाही में
गुझिया बादामी हो जाती है
जैसे अंगार पर रखा हो
औरत का जीवन
उबल रहा हो खून
कर रहा हो क्रंदन/जल भुन कर
तब कहीं
गुझिया बनती है
पिया की नजरों में
मुझसे ज्यादा चढती
ये गुझिया निंगोड़ी

7 टिप्‍पणियां:

  1. आभार |
    प्रभावी प्रस्तुति ||

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  2. पिया की नजरों में
    मुझसे ज्यादा चढती
    ये गुझिया निंगोड़ी
    वाह... गुझिया के माध्यम से बहुत कुछ कहती है आपकी रचना... पिया की प्यारी है तो क्या हुआ आखिर है, तो आपकी ही बनाई हुई न...

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  3. सुधा जी आपकी कविताएं, सरल, सहज एवं दैनिक जीवन के आस पास के विषयों पर होती है। बहुत अच्छा लिखती हैं आप………शुभकामनाएं

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  4. यूं ही बनाते और परोसते रहिए गुझिया ..
    पेट के रास्‍ते ही पी के दिल में जगह मिलती है ..
    गुझिया के माध्‍यम से भावनाओं को सुंदर अभिव्‍यक्ति दी आपने !!

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  5. बहुत सुन्दर रचना तमाम भावनाओं को समेटे हुए..

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